या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहानूर के मोतियों की लड़ी बन गईआयतों से मिलाता रहा आयतेंफिर जो देखा तो ना'त-ए-नबी बन गई
ज़िंदगी याद-ए-मदीना में गुज़ारी सारी'उम्र भर की ये कमाई है हमारी सारी
ज़हे-क़िस्मत जो आ जाए क़ज़ा आक़ा की चौखट परमुकम्मल मौत का आए मज़ा आक़ा की चौखट पर







