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अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ

  • Mohammad Wasim
  • 14/03/2025
  • 2 मिनट का पाठ
  • 3,854 बार देखा गया
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क़ल्ब-ए-'आशिक़ है अब पारा पारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !
कुल्फ़त-ए-हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त ने मारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरे आने से दिल ख़ुश हुआ था
और ज़ौक़-ए-'इबादत बढ़ा था
आह ! अब दिल पे है ग़म का ग़लबा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

मस्जिदों में बहार आ गई थी
जौक़-दर-जौक़ आते नमाज़ी
हो गया कम नमाज़ों का जज़्बा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

बज़्म-ए-इफ़्तार सजती थी कैसी !
ख़ूब सहरी की रौनक़ भी होती
सब समाँ हो गया सूना सूना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरे दीवाने अब रो रहे हैं
मुज़्तरिब सब के सब हो रहे हैं
हाए ! अब वक़्त-ए-रुख़्सत है आया
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरा ग़म हम को तड़पा रहा है
आतिश-ए-शौक़ भड़का रहा है
फट रहा है तेरे ग़म में सीना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

याद रमज़ाँ की तड़पा रही है
आँसूओं की झड़ी लग गई है
कह रहा है ये हर एक क़तरा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

हसरता ! माह-ए-रमज़ाँ की रुख़्सत
क़ल्ब-ए-'उश्शाक़ पर है क़ियामत
कौन देगा उन्हें अब दिलासा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तुम पे लाखों सलाम, माह-ए-ग़ुफ़राँ !
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !
जाओ हाफ़िज़ ख़ुदा अब तुम्हारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

नेकियाँ कुछ न हम कर सके हैं
आह ! 'इस्याँ में ही दिन कटे हैं
हाए ! ग़फ़्लत में तुझ को गुज़ारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

वासिता तुझ को मीठे नबी का
हश्र में हम को मत भूल जाना
रोज़-ए-महशर हमें बख़्शवाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

जब गुज़र जाएँगे माह ग्यारह
तेरी आमद का फिर शोर होगा
क्या मेरी ज़िंदगी का भरोसा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

माह-ए-रमज़ाँ की रंगीं फ़ज़ाओ !
अब्र-ए-रहमत से मम्लू हवाओं !
लो सलाम आख़िरी अब हमारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

कुछ न हुस्न-ए-'अमल कर सका हूँ
नज़्र चंद अश्क़ मैं कर रहा हूँ
बस यही है मेरा कुल असासा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

हाए ! 'अत्तार-ए-बद-कार काहिल
रह गया ये 'इबादत से ग़ाफ़िल
इस से ख़ुश हो के होना रवाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !

साल-ए-आइंदा, शाह-ए-हरम ! तुम
करना 'अत्तार पर ये करम तुम
तुम मदीने में रमज़ाँ दिखाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, माह-ए-रमज़ाँ !



क़ल्ब-ए-'आशिक़ है अब पारा पारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ
कुल्फ़त-ए-हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त ने मारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

तेरे आने से दिल ख़ुश हुआ था
और ज़ौक़-ए-'इबादत बढ़ा था
आह ! अब दिल पे है ग़म का ग़लबा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

मस्जिदों में बहार आ गई थी
जौक़-दर-जौक़ आते नमाज़ी
हो गया कम नमाज़ों का जज़्बा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

बज़्म-ए-इफ़्तार सजती थी कैसी !
ख़ूब सहरी की रौनक़ भी होती
सब समाँ हो गया सूना सूना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

तेरे दीवाने अब रो रहे हैं
मुज़्तरिब सब के सब हो रहे हैं
हाए ! अब वक़्त-ए-रुख़्सत है आया
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

तेरा ग़म हम को तड़पा रहा है
आतिश-ए-शौक़ भड़का रहा है
फट रहा है तेरे ग़म में सीना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

याद रमज़ाँ की तड़पा रही है
आँसूओं की झड़ी लग गई है
कह रहा है ये हर एक क़तरा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

हसरता ! माह-ए-रमज़ाँ की रुख़्सत
क़ल्ब-ए-'उश्शाक़ पर है क़ियामत
कौन देगा उन्हें अब दिलासा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

तुम पे लाखों सलाम, आह ! रमज़ाँ
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ
जाओ हाफ़िज़ ख़ुदा अब तुम्हारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

नेकियाँ कुछ न हम कर सके हैं
आह ! 'इस्याँ में ही दिन कटे हैं
हाए ! ग़फ़्लत में तुझ को गुज़ारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

वासिता तुझ को मीठे नबी का
हश्र में हम को मत भूल जाना
रोज़-ए-महशर हमें बख़्शवाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

जब गुज़र जाएँगे माह ग्यारह
तेरी आमद का फिर शोर होगा
क्या मेरी ज़िंदगी का भरोसा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

माह-ए-रमज़ाँ की रंगीं फ़ज़ाओ !
अब्र-ए-रहमत से मम्लू हवाओं !
लो सलाम आख़िरी अब हमारा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

कुछ न हुस्न-ए-'अमल कर सका हूँ
नज़्र चंद अश्क़ मैं कर रहा हूँ
बस यही है मेरा कुल असासा
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

हाए ! 'अत्तार-ए-बद-कार काहिल
रह गया ये 'इबादत से ग़ाफ़िल
इस से ख़ुश हो के होना रवाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

साल-ए-आइंदा, शाह-ए-हरम ! तुम
करना 'अत्तार पर ये करम तुम
तुम मदीने में रमज़ाँ दिखाना
अल-वदा'अ, अल-वदा'अ, आह ! रमज़ाँ

Mohammad Wasim

KI MUHAMMAD ﷺ SE WAFA TU NE TO HUM TERE HAIN,YEH JAHAN CHEEZ HAI KYA, LAUH O QALAM TERE HAIN.