ख़्वाजा पिया मेरे ख़्वाजा पिया
ख़्वाजा पिया मेरे ख़्वाजा पिया
दिल्ली राजस्थान तुम्हारा, या ख़्वाजा
सारा हिन्दुस्तान तुम्हारा, या ख़्वाजा
जग में वो सम्मान कभी न पाएगा
जिस ने किया अपमान तुम्हारा, या ख़्वाजा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
बिठाए ऊँट तो वो उठ न पाए
कटोरे में समंदर को समाए
जो नव्वे लाख को कलमा पढ़ाए
बताओ वो भला कैसे मिटेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
मेरा ख़्वाजा यहाँ का हुक्मराँ है
उसी के दम से ये हिन्दुस्ताँ है
उसी का हिन्द में सिक्का रवाँ है
वो हाकिम है, सदा हाकिम रहेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
उन्हें भेजा है सुल्तान-ए-जहाँ ने
'अली-ओ-फ़ातिमा के हैं वो प्यारे
मेरे शब्बीर-ओ-शब्बर के दुलारे
सदा उन का यहाँ सिक्का चलेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
यहाँ हिन्दू मुसलमाँ सिख हैं आते
मुरादें अपनी हैं वो पा के जाते
ये हिन्दुस्तानियों के हैं दुलारे
यूँही उन का सदा चर्चा रहेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
यहाँ हिन्दू मुसलमाँ साथ रह कर
सलामी देते हैं ख़्वाजा को झुक कर
बिला-तफ़रीक़ सब क़ुर्बां हैं उन पर
कोई अजमेर का क्या कर सकेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
मिला, शौक़-ए-फ़रीदी उन से ईमाँ
मिली हिन्दुस्ताँ को उन से पहचाँ
जो उन से बुग़्ज़ रक्खे वो है नादाँ
सदा ख़्वाजा का दर रौशन रहेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
मिटाने वाला इक दिन ख़ुद मिटेगा
मेरे ख़्वाजा का दर बाक़ी रहेगा
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