तुम्हें जो दिल से पुकारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
ब-वक़्त पाया सहारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
'अली के नूर-ए-नज़र, फ़ातिमा के लख़्त-ए-जिगर
नबी की आँख का तारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
समाया सारा अना सागर एक कूज़े में
सुना जो हुक्म तुम्हारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
तुम्हीं से हिन्द में ईमाँ की रौशनी फैली
तुम्हीं ने दीन सँवारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
जहाँ दु'आएँ हमेशा क़ुबूल होती हैं
वो आस्ताँ है तुम्हारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
जो डूबा दरिया-ए-रहमत में आप की, ख़्वाजा !
मिला न उस को किनारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
बना लो अपना गदा कहता है यही साबिर
ख़ुदा-रा कर दो इशारा, मेरे ग़रीब-नवाज़ !
तुम्हें जो दिल से पुकारा मेरे ग़रीब नवाज़
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