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सरकार-ए-ग़ौस-ए-आज़म नज़र-ए-करम ख़ुदारा

  • Mohammad Wasim
  • 30/09/2025
  • 1 मिनट का पाठ
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सरकार-ए-ग़ौस-ए-आ'ज़म ! नज़र-ए-करम ख़ुदा-रा
मेरा ख़ाली कासा भर दो, मैं फ़क़ीर हूँ तुम्हारा

सब का कोई न कोई दुनिया में आसरा है
मेरा ब-जुज़ तुम्हारे कोई नहीं सहारा

मौला 'अली का सदक़ा, गंज-ए-शकर का सदक़ा
मेरी लाज रख लो, या ग़ौस ! मैं मुरीद हूँ तुम्हारा

झोली को मेरी भर दो, वर्ना कहेगी दुनिया
ऐसे सख़ी का मँगता फिरता है मारा मारा

मीराँ बने हैं दूल्हा, महफ़िल सजी हुई है
सब औलिया बराती, क्या ख़ूब है नज़ारा

ये 'अता-ए-दस्त-गीरी कोई मेरे दिल से पूछे
वहीं आ गए मदद को, मैं ने जब जहाँ पुकारा

ये अदा-ए-दस्त-गीरी कोई मेरे दिल से पूछे
वहीं आ गए मदद को, मैं ने जब जहाँ पुकारा

ये तेरा करम है मुर्शिद ! जो बना लिया है अपना
कहाँ रू-सियाह फ़रीदी, कहाँ सिलसिला तुम्हारा

Mohammad Wasim

KI MUHAMMAD ﷺ SE WAFA TU NE TO HUM TERE HAIN,YEH JAHAN CHEEZ HAI KYA, LAUH O QALAM TERE HAIN.