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काश वो चेहरा मेरी आँख ने देखा होता

  • Mohammad Wasim
  • 07/05/2025
  • 1 मिनट का पाठ
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काश ! वो चेहरा मेरी आँख ने देखा होता

मुझ को तक़दीर ने उस दौर में लिक्खा होता

बातें सुनता मैं कभी, पूछता मा'नी उन के
आप के सामने असहाब में बैठा होताआयतें अब्र हैं और दश्त ज़माने सारे
हम कहाँ जाते अगर प्यास ने घेरा होता

हर सियाह रात में सूरज हैं हदीसें उन की
वो न आते तो ज़माने में अँधेरा होता

फ़ख़री ! जब मस्जिद-ए-नबवी में अज़ानें होतीं
मैं मदीने से गुज़रता हुआ झोंका होता

Mohammad Wasim

KI MUHAMMAD ﷺ SE WAFA TU NE TO HUM TERE HAIN,YEH JAHAN CHEEZ HAI KYA, LAUH O QALAM TERE HAIN.