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लिखा है इक ज़ईफ़ा थी

  • Mohammad Wasim
  • 14/01/2025
  • 1 मिनट का पाठ
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लिखा है इक ज़ईफ़ा थी जो मक्का में रहती थी
वो इन बातों को सुनती थी मगर खामोश रहती थी

वो सुनती थी मुह़म्मद है कोई हाशिम घराने में
वो कहता है ख़ुदा बस एक है सारे ज़माने में

वो सुनती थी हुवुल-की-लात की तज़लील करता है
वो अपने ह़क़ के पैमाने की यूँ तामील करता है

वो सुनती थी जो उसके साथ है, वो है ग़ुलाम उसका
मुसलमां हो ही जाता है जो सुनता है कलाम उसका

लिखा है वो ज़ईफ़ा एक दिन क़ाबा में जा पहुंची
हुवुल के पांव पर सर रख के उसने ये दुआ मांगी
मैं तुझको पूजती हूं और ख़ुदा भी तुझको कहती हूं
बड़ा अफ़सोस है जो आज-कल मैं रंज सहती हूं

वो ग़म ये है मुह़म्मद है कोई हाशिम घराने में

वो कहता है ख़ुदा बस एक है सारे ज़माने में
मिटा दो उसकी हस्ती को ना ले फिर कोई नाम उसका
जिगर छलनी हुआ जाता है सुन सुनकर कलाम उसका

दुआ करके उठी सजदे से और वो अपने घर आई
समझती थी ये दिल में अब मेरी उम्मीद भर आई
ज़ईफ़ा को खुशी थी अब हुवुल बिजली गिरा देगा
मुहम्मद तो मुह़म्मद साथियों को भी मिटा देगा

मगर कुछ दिन गुज़रने पर न जब उम्मीद बर आई
दुआ करके हुवुल से अपने दिल में खूब पछताई
ग़रज़ तरकीब उसने सोच ली ये खुद ही घर आकर
कि छोडूंगी बस्ती मैं रहूंगी और कहीं जाकर
ग़रज़ एक दिन सुबहा को उसने अपनी एक गठरी ली

निकल के घर से अपने और दरवाज़े पे आप बैठी
ज़ईफ़ा सोचती थी अब कोई मज़दूर मिलता है
उसे ये क्या ख़बर थी इक ख़ुदा का नूर मिलता है

फरीज़ा सुबहा का करके अदा सरकार-ए-दो आलम

चले जाते थे क़ाबा की तरफ़ वो रह़मते आलम
जलों में आप तो शम्सो क़मर मालूम होते थे
पए तस्लीम सजदे में शजर मालूम होते थे

ज़ईफ़ा मुन्तज़िर मज़दूर की बैठी थी घबराई
यका-यक सामने से चांद सी सूरत नज़र आई
ज़ईफ़ा ने कहा बेटा यहां आना, बता क्या नाम है तेरा ?
कहां मज़दूर हूं अम्मा बता क्या काम है तेरा

कहां मजदूर है गर तू तो चल गठरी मेरी लेकर

मैं खुश कर दूंगी ऐ मज़दूर, मज़दूरी तेरी देकर
ये सुनकर आपने गठरी उठाकर अपने सर पे ली
ज़ईफ़ों की मदद करना ये आदत थी पयम्बर की
ग़रज़ गठरी को लेके मन्ज़िले मक़सूद पर आई

कहां दिल से, के ऐ दिल अब तेरी उम्मीद भर आई
कहा बेटा जो दिल थी में तमन्ना हो गई पूरी
मुह़म्मद तो मुह़म्मद साथियों से हो गई दूरी

लगी देने जो मज़दूरी ज़ईफ़ा आपको जिस दम
तो फ़रमाने लगे उस दम हुज़ूरे सरवरे आलम
ये कोई काम है अम्मा मैं लूं अब जिसकी मज़दूरी
कोई गर और ख़िदमत हो तो वो भी मैं करूं पूरी
ये फ़रमाते हुए की आपने जाने की की तैय्यारी

ज़ईफ़ा से इजाज़त चाहते थे रह़मते-बारी
ज़ईफ़ा ने कहा बेटा ज़रा ठहरो चले जाना
मुझे इक बात कहनी है ज़रा सुन के चले जाना
यक़ीं जानो कि अब मक्का में झगड़ा होने वाला है

मैं समझाती हूं तुझको इसलिए तू भोला-भाला है
वो मक्के में क़बीला हाशमी नामो लक़ब वाले
वो ही बेटा जो हैं सरदार अब्दुल मुत्तलिब वाले
उन्हीं में इक जवां है जो सुना जाता है साहिर है

कि इस फ़न में मगर बेटा वो अपने ख़ूब माहिर है
असर होता है जिसके दिल उल्फ़त बो के रहता है
जो सुनता है कलाम उसका वो उसका होके रहता है
हमेशा बच के चलना उससे, बोले कोई नाम उसका

नसीहत है यही मेरी ना सुन्ना तछ कलाम उसका
नबी बुढ़िया के दिल में नूर-ए-वहदत भरने वाले थे
नसीहत सुन रहे थे, जो नसीहत करने वाले थे

ज़ईफ़ा ने कहा बेटा भला क्या नाम है तेरा
तेरा आग़ाज़ क्या है और क्या अंजाम है तेरा
कहां हज़रत ने बुढ़िया से तुझे क्या नाम बतलाऊं
मैं क्या काम बतलाऊं, मैं क्या अंजाम बतलाऊं
मैं बन्दा हूं ख़ुदा का और मुजस्सम नूर ज़ात उसका

कहा गर्दन झुका कर मैं मुह़म्मद हूं रसूल उसका
मैं हूं मासूम दुनिया में मेरा दुश्मन ज़माना है
ख़ुदा वाहिद है आलम में मुझे बस ये बताना है
ये सुनना था कि बस आंखों से आंसू हो गए जारी

नबी के इश्क़ की इक चोट सी दिल पर लगी भारी
ज़ईफ़ा ने कहा बेटा करो मुश्किल मेरी आसां
मैं ऐसी जीत के सदक़े, मैं ऐसी हार के कुर्बां
हुआ फिर हाल पर उसके जो फज़ले इज़्ज़ते बारी

ज़ईफ़ा के ज़ुबाँ से खुद-ब-खुद कलमा हुआ जारी

ला इलाहा इल्लल्लाह मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह

Mohammad Wasim

KI MUHAMMAD ﷺ SE WAFA TU NE TO HUM TERE HAIN,YEH JAHAN CHEEZ HAI KYA, LAUH O QALAM TERE HAIN.